धर्म, युद्ध और शांति: गीता के सिद्धांतों का आधुनिक विश्लेषण
Keywords:
धमश, वनष्काम कमश, यद्धुनीवत, र्ांवत, आध्यावत्मक, तनािग्रस्त, विश्व र्ांवत।Abstract
श्रीमद्भगितगीता, भारतीय दर्शन का एक अमल्ूय ग्रंथ वजसमेंसमस्त संसार और मानि जगत केकल्याण का सारतत्त्ि वनवहत है,जो जीिन और संघर्शकेविवभन्न आयामों पर गहन दृविकोण प्रदान करती है। महाभारत के यद्धु के मैदान मेंअजनशु की नैवतक दवुिधा और कृष्ण द्वारा वदए गए उपदेर् के िल यद्धु की प्रासंवगकता तक सीवमत नहीं हैं, बवल्क मानि इवतहास की सामावजक, धावमशक, दार्शवनक और राजवनवतक िाताशभी हैजो आधवुनक जीिन केहर पहलूको छूतेहैं। यह ग्रन्थ जीिन की समस्त बाधाओ, ं पीड़ाओ, ं दुःुखों, समस्याओं को दरू कर मोि की ओर अग्रसर करनेिाला एिं मानि को वनष्काम भाि सेकत्तशव्य की प्रेरणा देनेिाला धावमशक एिं मोिप्रद ग्रन्थ है। गीता का मलू संदर्े 'कमशयोग' और 'धमश' पर आधाररत है। धमशका अथशके िल धावमशक अनष्ठुानों सेनहीं, बवल्क अपनेकतशव्यों और नैवतकता केपालन सेहै। अजनशु को उपदेर् देतेसमय, कृष्ण बतातेहैंवक धमशयद्धु के िल भौवतक यद्धु नहीं है, बवल्क अन्याय, अधमशऔर अज्ञानता के वखलाफ संघर्शहै। आधवुनक संदभशमें, यह संघर्शअसमानता, भ्रिाचार, और सामावजक अन्याय केवखलाफ हो सकता है।गीता यह वसखाती हैवक र्ांवत का मागशके िल वहसं ा सेबचनेमेंनहीं, बवल्क सत्य और न्याय केवलए संघर्श मेंहै। 'अवहसं ा परमो धमशुः' केसाथ-साथ 'धमशहतेुयद्धु' का संतलुन आधवुनक समाज केवलए एक वर्िाप्रद संदर्े है। आज की दवुनया में, जहां आतंकिाद, पयाशिरणीय संकट, और सामावजक विर्मताएं बढ़ रही हैं, गीता केवसद्धांत हमेंन के िल नैवतक और आध्यावत्मक मागशदर्शन देतेहैं, बवल्क संघर्शऔर समाधान केबीच संतलुन बनाना वसखातेहैं।अतुः, गीता के िल एक धावमशक ग्रंथ नहीं, बवल्क जीिन का दर्शन है, जो आधवुनक समाज को नैवतकता, कतशव्य, और र्ांवत केमहत्ि को समझानेमेंसहायक है।
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